बुधवार, 25 जून 2008
एक प्रेरणादायक समाचार :पटना में ऍमबीऐ डिग्रीधारी युवा ने सब्जी का ठेला लगाया
रविवार, 22 जून 2008
दुर्ग जिले की जनता ने लोकतंत्र को मजबूत किया
शनिवार, 21 जून 2008
मंहगाई पर शोर क्यो ?किसान की बात क्यो नही ?
किसी ज़माने में साहित्य में सिनेमा में पत्र पत्रिकाओ में किसान की मूक आवाज को स्थान दिया जाता था लेकिन अब न तो कवियों की कविताओ में ,न कहानियो में किसान है,वे मंहगाई का रोना रोयेंगे फैशन पर आंसू बहायेंगे ,चाँद तारे , जमीन आसमान सब पर लिखेंगे लेकिन किसान की दुर्दशा पर नही ,बेरोजगारी का रोना रोयेंगे लेकिन इस देश में सदियों तक कृषि से जीवन निर्वाह करने वालो पर नही। किसान चूँकिश्रम करता हैदिन की कड़ीश्रम के पश्चात् किसान के पास लिखने पढने के लिए समय नही रहता इसलिए वह यदि अपनी आवाज को कलम से नही लिख सकता तो क्या आपका फर्ज नही बनता,आप भी यदि चुप रहेंगे तो इस देश की कृषि संपदा का पेटेंट विदेशो में होता रहेगा,और हम नेट में सिर्फ़ समाचार पढ़ते रहेंगे की अमुक का पेटेंट हो गया ,इस देश में किसान कर्ज से लड़कर आत्म हत्या कर रहे ,जिस फसल को वह दुलारकर म्हणत परिश्रम से बड़ा करता है उसे जलने की नौबत आती है की दम नही मिल रहे उस वक्त उस किसान की दिल की क्या हालत होती होगी कोई समझ सकता है ,किसानी कोई व्यपार तो नही की दो नम्बर से पैसा बना ले उसे तो जितना म्हणत किया उतना तो मिलना ही चाहिए । क्या पेट्रोलियम उत्पादक देश पेट्रोल के मंहगे होने का शोर मचाते है? नही क्योकि मंहगे पेट्रोल से उनका फायदा होता है क्योकि पेट्रोल उनकी अर्थ व्यवस्था का अंग है, और हमारी अर्थ व्यवस्था कृषि पर टिकी है,
कहती क्या खेत के मेड से गौरैया
गुरुवार, 19 जून 2008
खेती अपन सेती
दिन दुनी खेती का रकबा सिकुड़ता जा रहा है अनाज उत्पादन में वृध्दि के बावजूद खाद्यान्न की कमी हो रही है इतना की विश्व के सबसे विकसित देश के राष्ट्रपति तक को दुसरो की थाली में झांकनी पड़ रही की वह कितना खाता है, जनसँख्या जैसे जैसे बढ़ रही खाद्यान की जरुरत भी ,पर खेती के लागत में बढोत्तरी मजदूरों का आभाव ,म्हणत की अधिकता को देखकर अधिकतेर लोग दुसरे व्यवसाय की ओउर उन्मुख हो रहे,आज भी भारत में छोटी जोत के किसान ज्यादा है जो मंहगे क्रषि यन्त्र नही खरीद सकते ,किसानो को उपज का मूल्य भी सही नही प्राप्त होता इस देश की अधिकांश जनसँख्या की क्रषि से जुड़े होने के बावजूद कृषि के समंध में ऐसे बाबु लोग निर्णय ले रहे जो शहर में रहते है जो चिल्लाते रहते है कीमंहगाई बढ़ रहीजो से खाद्यानआयत कर इस देश के किसानो के पेट में लात मारते है जो अपने आपकोअर्थ शास्त्री समझ बड़े बड़ेनीतिगत निर्णय लेते है,