दिन दुनी खेती का रकबा सिकुड़ता जा रहा है अनाज उत्पादन में वृध्दि के बावजूद खाद्यान्न की कमी हो रही है इतना की विश्व के सबसे विकसित देश के राष्ट्रपति तक को दुसरो की थाली में झांकनी पड़ रही की वह कितना खाता है, जनसँख्या जैसे जैसे बढ़ रही खाद्यान की जरुरत भी ,पर खेती के लागत में बढोत्तरी मजदूरों का आभाव ,म्हणत की अधिकता को देखकर अधिकतेर लोग दुसरे व्यवसाय की ओउर उन्मुख हो रहे,आज भी भारत में छोटी जोत के किसान ज्यादा है जो मंहगे क्रषि यन्त्र नही खरीद सकते ,किसानो को उपज का मूल्य भी सही नही प्राप्त होता इस देश की अधिकांश जनसँख्या की क्रषि से जुड़े होने के बावजूद कृषि के समंध में ऐसे बाबु लोग निर्णय ले रहे जो शहर में रहते है जो चिल्लाते रहते है कीमंहगाई बढ़ रहीजो से खाद्यानआयत कर इस देश के किसानो के पेट में लात मारते है जो अपने आपकोअर्थ शास्त्री समझ बड़े बड़ेनीतिगत निर्णय लेते है,
गुरुवार, 19 जून 2008
खेती अपन सेती
खेती किसानी के धंधे को या इससे जुडी बात को नेट में ज्यादा देखा पढ़ा नही जाता,एक कृषक का पुत्र भी इस व्यवसाय को मज़बूरी में ही अपनाता है,बात सही भी है खेती कोई छोटा काम नही की घर बैठे पैसा बरसे,किसान मेहनत करता है, योजना बनाता है,उसे क्रियान्वित करता है,तब कही जाकर फसल उगता है। लोग आराम से बिना शारीरिक मेहनत के पैसे मिले उसे ज्यादा पसंद करते है,मेहनत तो सभी करते है कुछ काम में इससे भी कड़ी मेहनत होती है,लोग तकनिकी काम को पसंद करते है,लोग प्रबन्धन के काम को पसंद करते है लोग रुतबे वाली सर्विस पसंद करते है,लोग कुछ ऐसा धंधा करना चाहते है जिसमे दिन दुनी रात चौगुनी वृध्दी हो ,फिर लोग खेती क्यो करे ?
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3 टिप्पणियां:
सोचनीय लेख. खेती-बाडी के विषय को संजीदगी से लिया जाना चाहिए, किसानों के हित में कोई हल निकला जाना चाहिए...बहुत सी एसी बातों ने आज समाज ने जन्म लिया है की हम जिसे खाकर जीते हैं वही सवालों के कठघरे में आके खडा है...बहुत ही उम्दा. और भी लिखें इस विषय पर. शुक्रिया.
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उल्टा तीर
हिन्दी चिट्ठाजगत में आपका स्वागत है. नियमित लेखन के लिए मेरी हार्दिक शुभकामनाऐं.
आप लोगो ने मेरे इस ब्लॉग को पढ़कर प्रतिक्रिया दी इसके लिए मई आभारी हु तथा नेवेदन है की कृपया खेत खलिहान क्रषि से जुड़े मुद्दों को उठाने का कष्ट करेंगे तथा ब्लॉग के संंध मे सुझाव भी
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