धान के समर्थन मूल्य में जब भी बढ़ाने की बात होती हा तब तब मंहगाई का रोना रोया जाता है,गरीबी की बात की जाती है ,क्यो ?इस देश की अधिकांश जनसँख्या क्रषि आधारित है तथा क्रषि पर आधारित व्यवसाय रोजी रोजगार से जुड़े है और यदि गरीबी है तो इसलिए क्योकि क्रषि में उन्हें पर्याप्त आमदनी नही हो पाती या किसान मजदूरों को ज्यादा मेहताना नही देपाते , क्या कोई देश अपनी अर्थव्यवस्था के मुख्य संसाधन पर इस तरह रोना रोता है, किसानो की बातो को सिर्फ़ इसलिए नजर अंदाज कर दिया जाता है क्योकि भारत में राजनीती प्रशासन मीडिया में शहरी वर्ग का प्रभुत्व है क्योकि राजनीतिज्ञों को किसान नही उद्योगपति चंदा देते है क्योकि वे दाल रोटी नही अमेरिकी पिज्जा पसंद करते है क्योकि वे शहर की कालोनियों में रहते है तो क्यो वे किसान की बात सुनेगे उन्हें तो शहरी वर्ग का ध्यान रखना होता है क्योकि वाही इस देश के कर्ण धार है इसलिए किसान इस देश में दोयम दर्जा रखता है ।
किसी ज़माने में साहित्य में सिनेमा में पत्र पत्रिकाओ में किसान की मूक आवाज को स्थान दिया जाता था लेकिन अब न तो कवियों की कविताओ में ,न कहानियो में किसान है,वे मंहगाई का रोना रोयेंगे फैशन पर आंसू बहायेंगे ,चाँद तारे , जमीन आसमान सब पर लिखेंगे लेकिन किसान की दुर्दशा पर नही ,बेरोजगारी का रोना रोयेंगे लेकिन इस देश में सदियों तक कृषि से जीवन निर्वाह करने वालो पर नही। किसान चूँकिश्रम करता हैदिन की कड़ीश्रम के पश्चात् किसान के पास लिखने पढने के लिए समय नही रहता इसलिए वह यदि अपनी आवाज को कलम से नही लिख सकता तो क्या आपका फर्ज नही बनता,आप भी यदि चुप रहेंगे तो इस देश की कृषि संपदा का पेटेंट विदेशो में होता रहेगा,और हम नेट में सिर्फ़ समाचार पढ़ते रहेंगे की अमुक का पेटेंट हो गया ,इस देश में किसान कर्ज से लड़कर आत्म हत्या कर रहे ,जिस फसल को वह दुलारकर म्हणत परिश्रम से बड़ा करता है उसे जलने की नौबत आती है की दम नही मिल रहे उस वक्त उस किसान की दिल की क्या हालत होती होगी कोई समझ सकता है ,किसानी कोई व्यपार तो नही की दो नम्बर से पैसा बना ले उसे तो जितना म्हणत किया उतना तो मिलना ही चाहिए । क्या पेट्रोलियम उत्पादक देश पेट्रोल के मंहगे होने का शोर मचाते है? नही क्योकि मंहगे पेट्रोल से उनका फायदा होता है क्योकि पेट्रोल उनकी अर्थ व्यवस्था का अंग है, और हमारी अर्थ व्यवस्था कृषि पर टिकी है,
शनिवार, 21 जून 2008
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